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रोजी-रोटी कमाने दिल्ली गए प्रवासी मजदूर की मौत, ताबूत में भरकर आया शव

रागीब की मौत मजदूरों के उस संघर्ष की कहानी बयां कर गई, जहां मजबूरी में लाखों लोग अपनों से दूर होकर, सपनों के शहर में जीवन जीने को मजबूर हैं। हर साल कितने रागीब सपनों के लिए शहरों में अपनी जान गंवा बैठते हैं, लेकिन उनके पीछे छूट जाता है—टूटे सपनों और आँसुओं से भीगे कुछ चेहरे और तन्हा परिवार।गृह जिले के प्रशासन एवं ग्रामीणों ने सरकार से आर्थिक सहायता की मांग की है, ताकि मृतक के बच्चों को शिक्षित किया जा सके और परिवार को जीवन यापन में मुश्किलें कम हों।

अमृत विहार न्यूज

गौतम उपाध्याय

औरंगाबाद (बिहार)

गोह के मजदूर की दर्दनाक मौत, परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड के मीरपुर पंचायत के भलुआर गांव का माहौल शनिवार को बेहद गमगीन था। गांव की तंग गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था, हर तरफ दुख और मातम का माहौल था। गांव के लोग एक बार फिर किस्मत की बेरुखी और मजबूरी की उस हकीकत से रूबरू हो रहे थे, जिससे गांव के अधिकांश गरीब मजदूर रोज दो-चार होते हैं। भलुआर के 45 वर्षीय मजदूर रागीब अंसारी उर्फ सोनी की अचानक मौत की खबर जैसे ही गांव में पहुंची, हर आंख नम हो गई। दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर के गुड़गांव में काम करने वाले रागीब का शव जब गांव लौटा, तो परिवार और आसपास के लोगों का सब्र टूट गया।

रोजी-रोटी के लिए सपनों की नगरी में संघर्ष

रागीब अंसारी की कहानी बिहार के लाखों गरीब मजदूरों की कहानी है, जो पेट की आग बुझाने के लिए घर-परिवार छोड़कर फर्राटा भरती दुनिया की चकाचौंध में खुद की चमक ढूंढते हैं। रागीब के पिता स्व. सर्फुद्दीन अंसारी पहले ही इस दुनिया से रुखसत हो चुके हैं। मां का साया भी सिर से उठ गया था। घर के जिम्मेदारियों की पूरी गठरी कम उम्र में ही रागीब के कंधों पर आ गई थी। रागीब ने छोटी उम्र से ही मेहनत को अपनी किस्मत मान लिया था। घर के चूल्हे की आग बुझाए न जाए, इसके लिए वह सपनों के शहर दिल्ली-एनसीआर की ओर निकल पड़ा।गुड़गांव के सेक्टर 37 स्थित सिमरन इंटरनेशनल कंपनी में रागीब जैकेट सिलने का काम करता था। सिलाई मशीन पर उसके हाथ की सफाई और मेहनत सभी को चौंका देती थी। हर महीना गांव छोटा सा हिस्सा भेजता, जिससे बच्चों की पढ़ाई, घर-परिवार की आवश्यकता पूरी हो सके। पत्नी अफसरी खातून और तीन नन्हें बच्चों के भरण-पोषण के सपनों के लिए रागीब रोज मेहनत करता रहा।

अचानक टूटा आसमां

बीते गुरुवार को अंजान सा बुरा साया रागीब के सिर पर मंडराने लगा। रोज की तरह वह कंपनी में काम कर रहा था, तभी अचानक बेहोश हो गया। सहकर्मियों ने तत्काल उसे नजदीकी चिकित्सालय में भर्ती कराया, लेकिन डॉक्टरों की लाख कोशिश के बावजूद उसकी जान नहीं बच सकी। मौत की खबर सुनते ही पूरा गांव स्तब्ध रह गया। घर में चित्कार मच गई।रागीब के चाचा, उपहारा थाने में कार्यरत चौकीदार महबूब आलम बताते हैं कि रागीब ने अपने माता-पिता के निधन के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी संभाली थी। उसके जाने से परिवार पूरी तरह बेसहारा हो चुका है। मां-बाप का साया तो पहले ही उठ चुका था, अब रागीब के चले जाने से पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो गए हैं। अफसरी खातून पति के शव से लिपट-लिपट कर बार-बार बेहोश हो जाती है, गांव की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश में रो पड़ीं।

गांववासियों ने दी अंतिम विदाई

जिस भलुआर गांव में कुछ दिन पहले तक रागीब के हंसी-ठहाके गूंजते थे, उसी गांव का माहौल आज मातम में डूबा था। परिवार के लोग और गांववासी शव के अंतिम दर्शन करने को घर पर उमड़ पड़े। हर कोई रागीब की मेहनत, उसके अपनापन और संघर्ष को याद कर रहा था। जिन बच्चों के सिर पर पिता का साया उठ गया, उनकी मासूम आंखों में डर, बेचैनी और भविष्य की चिंता साफ दिख रही थी।

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि रागीब ने जीवन भर बेइंतहा मेहनत की, लेकिन उसका सपना, परिवार को खुशहाल बनाने वाली वो उम्मीद, अधूरी रह गई। अब सवाल है, रागीब के बच्चों का भविष्य कौन संवारेगा? पत्नी अफसरी खातून अपने पति के बगैर जीवन की कल्पना तक नहीं कर पा रही है। प्रशासन और सरकार की मदद की उम्मीद जगी है, ताकि बेसहारा परिवार को कुछ सहारा मिल सके।

रागीब की मौत मजदूरों के उस संघर्ष की कहानी बयां कर गई, जहां मजबूरी में लाखों लोग अपनों से दूर होकर, सपनों के शहर में जीवन जीने को मजबूर हैं। हर साल कितने रागीब सपनों के लिए शहरों में अपनी जान गंवा बैठते हैं, लेकिन उनके पीछे छूट जाता है—टूटे सपनों और आँसुओं से भीगे कुछ चेहरे और तन्हा परिवार।गृह जिले के प्रशासन एवं ग्रामीणों ने सरकार से आर्थिक सहायता की मांग की है, ताकि मृतक के बच्चों को शिक्षित किया जा सके और परिवार को जीवन यापन में मुश्किलें कम हों।

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