अमृत विहार न्यूज

गौतम उपाध्याय
पटना|बिहार
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने जहां राजनीतिक सरगर्मी को नई दिशा दी है, वहीं अब सांस्कृतिक अनुशासन और सामाजिक मर्यादा को लेकर बहस तेज हो गई है। दरअसल, सोमवार को बिहार पुलिस ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें साफ लिखा था—“गीत वही सुनें, जो सद्भावना बढ़ाएं… अश्लीलता नहीं। सार्वजनिक जगहों पर दोहरे अर्थ वाले या अश्लील गाने बजाना कानूनन गलत है।”बिहार पुलिस की यह पोस्ट चुनावी परिणामों के तुरंत बाद आई, जब राज्य में विभिन्न इलाकों में जीत के जश्न के दौरान तेज आवाज में अश्लील और दोहरे अर्थ वाले गीतों के बजने के मामले सामने आए थे। कई जगह वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिनमें कुछ समर्थक नाचते-गाते नजर आए। ऐसे में पुलिस की यह पोस्ट सीधे तौर पर उन्हें चेतावनी की तरह देखी जा रही है, जिन्होंने जश्न के नाम पर मर्यादा की सीमा लांघ दी।पिछले कुछ वर्षों में भोजपुरी गीतों और स्थानीय आयोजनों में फूहड़ता भरे गानों के चलन को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। समाजशास्त्रियों का कहना है कि इन गीतों का असर युवाओं की सोच और समाज के सांस्कृतिक माहौल पर पड़ता है। वहीं, पुलिस के इस संदेश के बाद अब यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या बिहार में “अश्लील गीतबंदी” जैसे किसी नए कानून की तैयारी तो नहीं हो रही।राजनीतिक विश्लेषक इसे एक सामाजिक संदेश और सरकार की संभावित नीति की झलक के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि जिस तरह से बिहार में शराबबंदी लागू की गई थी, उसी तरह यदि फूहड़ गीतों पर रोक की पहल होती है, तो इसे समाज सुधार के कदम के रूप में देखा जाएगा। हालांकि, इसके कानूनी स्वरूप और क्रियान्वयन को लेकर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।पुलिस सूत्रों का कहना है कि फिलहाल कोई नया कानून लाने का निर्देश नहीं मिला है, लेकिन धारा 294 आईपीसी के तहत अश्लीलता फैलाने वाले सार्वजनिक कार्य, जिसमें अश्लील गीत या प्रदर्शन शामिल हैं, पहले से ही दंडनीय अपराध हैं। यानी कानून मौजूद है, बस इसके प्रवर्तन पर जोर देने की जरूरत है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान बिहार में बजने वाले कुछ गीतों को लेकर विरोधियों पर निशाना साधा था और इसे “संस्कृति का अपमान” बताया था। संभव है कि यही जनसंवेदना अब राज्य के प्रशासनिक स्तर पर भी प्रभाव डाल रही हो।फिलहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि पुलिस की यह ऑनलाइन चेतावनी महज एक संदेश भर है या फिर आने वाले दिनों में इसे लेकर कोई ठोस नीति बनती है। बिहार की जनता अब यह जानने को उत्सुक है कि क्या आने वाले वक्त में सड़क से शादी-ब्याह तक, हर जगह बजने वाले फूहड़ गीतों पर वास्तव में लगाम लगेगी या नहीं।



