अमृत विहार न्यूज

विजय कुमार उपाध्याय
शिक्षक अक्षर विद्या गृह दरधा
औरंगाबाद|गोह
एक समय था जब गोह प्रखंड का सबसे अधिक भीड़ वाले छठ घाटों में गिनतीं प्रखंड मुख्यालय का तालाब हुआ कर्ता था,छठ व्रतियों द्वारा यही भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर मां दुर्गा मंदिर में पूजा अर्चना कर अपने व्रत को पूर्ण करती थी, लेकिन बदलते समय के साथ यह भीड़ धीरे धीरे घटती चली गई।दिन प्रतिदिन प्रखंड मुख्यालय का यह तालाब कचरे के ढ़ेर और जलकुंभी के आगोश में समाती चली जा रही है।बोतल प्लास्टिक और जले दोने-पत्तल बिखरे पड़े हैं,जो एक सवाल खड़ा करता है कि क्या ऐसे में छठ मैया का अर्घ्य दें पाना संभव है।

शुद्धता और आस्था वाले पर्व छठ का अर्घ्य ऐसे तालाब में देने से छठ मईया कैसे होंगी प्रसन्न
शुद्धता और आस्था का चार दिवसीय अनुष्ठान छठ को लेकर ऐसी मान्यताएं हैं कि आज भी इस पर्व का प्रसाद कुंआ के जल से बनता है,छठ करने वाले श्रद्धालु ज़मीन पर सोते हैं कोरे वस्त्र पहनते हैं ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या इतनी शुद्धता के साथ किया जाने वाला छठ का अर्घ्य इतने गन्दे तालाब में देने से छठ मैया प्रसन्न हो पाएंगी।जाजापुर के रहने वाली एक बुजुर्ग महिला रामावती कूंवर कहती हैं कि “हमनी त जिंदगी भर साफ़ सुथरे तालाब में पूजा कईली दिनो दिन गोह के पोखरा कचरा के बदबू आउ जलकुंभी से भरल जाइत हें,छठ मईया कईसे खुश होयतन”

प्रशासन की लापरवाही उम्मीदें अधूरी
ना जाने कितने बार स्थानीय समाचारपत्रों में इस बात को प्रकाशित किया गया बार बार आवाज दी गई मगर सफाई के नाम पर सिर्फ आश्वासन दिया गया। बिहार का सबसे बड़ा पर्व माना जाने वाला छठ दिनों दिन प्रशासनिक उदासीनता की बली चढ़ रही हैं।ना जाने कब यह समाज जिम्मेदारी को फ़र्ज़ समझेगा।धर्म और व्यवस्था का सच यहीं है कि कल तक यह सरोवर श्रद्धा का प्रतीक था,आज बेपरवाही की मिसाल बन गया है। तालाब के चारों ओर फैले कचरे में श्रद्धा की पवित्रता कहीं खो गई है मगर भक्तों की आस है शायद प्रशासन की आंखें खुले, तालाब की सफ़ाई हों वरना इस घाट पर आने वाले वक्त में छठ गीतों के बजाय सिसकी गूंजेगी।





