अमृत विहार न्यूज

आशुतोष मिश्रा (दैनिक भास्कर गोह)
औरंगाबाद
हसपुरा प्रखंड मुख्यालय से 5 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम हिस्सें में स्थित,8537 जनसंख्या वाले हसपुरा का पीरू पंचायत असल मायने में खास है। यहां के लोगों में अपनी मिट्टी से बेहद लगाव है। जो भी दशकों पहले गांव छोड़कर दूसरी जगह बसें है, वे भी गांव की मोहब्बत को सीने से लगाए फिरते हैं। पीरू पंचायत मुख्यालय गांव अपने अंदर बहुत से इतिहास को समेटे हुए है। 14 वार्ड के इस पंचायत में पीरु, डिहुरी राजस्व गांव के साथ बरेवा(चड़वां) चिरागी गांव है। वहीं मठिया, भजन बिगहा, बेला बिगहा, हीरा शहीद, पाडे़बाग, गुलरिया बिगहा, गवसपुर, चिरैयाटांड़, रसुलपुर, शंकरपुर व सावधान बिगहा इसके टोले है। शिक्षा के प्रति जागरूक रहने वाले पीरू पंचायत मुख्यालय गांव में वर्ष 1936 में पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी की स्थापना किया गया था। इस लाइब्रेरी में बहुत से ऐतिहासिक दुर्लभ पुस्तकें आज भी मौजूद हैं। इस लाइब्रेरी से पढ़ाई कर पीरु गांव के सैकड़ों लोग मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय के लोग देश के विभिन्न उच्च स्तरीय महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं।

यहां के हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पूरे क्षेत्र में दी जाती हैं। दोनों समुदाय वर्षाें से सौहार्दपूर्ण तरीके से गांव में रह रहे हैं। आपसी मेल-मिलाप ऐसा की ईद, तजिया, होली, दीपावली और दशहरा पर एक-दूजे के घरों में जाकर बधाई दी जाती है।
महाकवि बाणभट्ट का जन्मस्थली है प्रीतिकूट गांव
प्राचीन कालीन प्रतिकूट आज पीरू गांव के नाम से मशहूर है। ऐतिहासिक विषय पर लिखित प्रथम चरितकाव्य तथा गद्यकाव्य हर्षचरित्र है। इसके लेखक बाणभट्ट मूलतः प्रीतिकूट वर्तमान पीरू गांव के रहने वाले थे जो कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में राजपंडित व महाकवि के रूप में सुशोभित थे। प्रीतिकूट का क्षेत्र प्रारंभ में वात्स्यायन गोत्र एवं भृगु वंशी ब्राह्मणों का गढ़ रहा था। बाणभट्ट की मां का राजदेवी का देहांत पहले हो गया था उनके 14 वर्ष की आयु में पिता चित्रभानु का साया उठ गया। बाणभट्ट ने भर्चु नाम के योग्य गुरु के सानिध्य में शिक्षा-दीक्षा ग्रहण किया था।

मथुरा चौधरी व कमलनयन सिंह ने कबूल किया था इस्लाम
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पहले दिल्ली सुल्तान फिरोजशाह तुगलक के समय वर्तमान अरवल जिले के बम्भई गांव निवासी मथुरा चौधरी और मुगल बादशाह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम उर्फ बहादुर शाह के शासनकाल में बम्भई गांव निवासी कमलनयन सिंह ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया। इस्लाम ग्रहण करने के बाद मथुरा चौधरी गुलाम मुस्तफा खान बन गए वहीं कमलनयन सिंह नसीरुद्दीन हैदर खान बन गए। इन दोनों ने तत्कालीन बादशाहों के जजिया नीति से परेशान होकर इस्लाम स्वीकार किया था। इन्हीं दोनों के वंशज आज पीरु गांव में मुस्लिम समुदाय वर्ग में निवास करते हैं।